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आप सब की समाहतों के हवाले

आज दिनांक ४.७.२३ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर मेरी ग़ज़ल
ग़ज़ल आप सब की समाहतों के हवाले
मापनी १२२२,१२२२,१२२२,१२२२
मतला
मुझे तेरी रिफ़ाक़त का जमाना  याद आता है,
ख़ुशी जो छीन ली हमसे,फ़साना याद आता है।
 
हुस्ने मतला
तुम्हारी उस नज़ावत का बहाना याद आता है,
हम-तुम मिलकर जो गाते थे,तराना याद आता है।

तुम अक्सर ये कहते थे फ़रागत हुई नहीं तुमको,
मुझे तेरे इन बहानो पर हॅंस देना याद आता है ।

भुलाया भी नहीं जाता कभी तेरी मुहब्बत को,
मुझे अपनी वफ़ाओं का निभाना याद आता है।

तुम्हारी नज़र -अन्दाजी तो गवारा‌ है नहीं मुझको,
मुझे अब आॉंसुओं का बह जाना  याद आता है।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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5 Comments

madhura

05-Jul-2023 09:44 AM

nice

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Abhinav ji

05-Jul-2023 08:26 AM

Very nice 👍

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Punam verma

05-Jul-2023 07:46 AM

Very nice

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